rrp
दिनभर मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा..
चलती रही- बातें.. गुफ्तगू.. बहस-व-चर्चा..
मेरे थके-हारे लफ्जों, अब तुम भी सो जावो!
rrp
हर्फ.. लफ्ज.. मिसरे.. अब सो जायेंगे!
- सब मतलब आवारा हो जायेंगे!!
(आवो, किसी नयी जुबाँ का ख्वाब बुनें!!!)
rrp
सुबह हो चुकी.. चलो, लफ्जों को जगाया जायें..
- आवो, कुछ देर चंद तरोताजा बातें करें!
ऐ सूरज, बेनूर लफ्जों को रौशन कर दें!!
rrp
सुबह हो चुकी.. चलो, लफ्जों को जगाया जायें..
ऐ सूरज, बेनूर लफ्जों को रौशन कर दें!!
गूंगी रात की चद्दर अब दूर ही फेंक दे
rrp
वह एक लडकी जो कभी कभी दिखाई देती है
न जाने क्यूं उस पे नज्म लिखने को जी चाहता है
जिंदगी में ना सही, लफ्जों में मै उस के साथ रहूँ
rrp
आप सामने आये पर बात न बनी
इस गरीब से आप खामोश ही रहे
(-लफ्ज भी महंगे हो गये है शायद!)
rrp
ऑंखों से हल्का सा सलाम, एक लफ्ज भी नहीं..
-ढेर सारी उम्मीदें थी आज की मुलाकात से..
अपने बीच लफ्जों का रिश्ता भी न बन पाया!
rrp
अब की बार हम मिले तो आप ख़ामोश ही थी
अपने बीच लफ्जों का रिश्ता भी न बन पाया!
-ढेर सारी उम्मीदें थी आज की मुलाकात से..
rrp
बातों में रूखा सूखापन.. लफ्जों से मानी निकल गये..
हम-तुम वहीं रहे.. जीने के अंदाज बदल गये..
(-यह क्या जीना जब तेरे दिल से बाहर आ गया हूँ)
rrp
जाने कब होगी तुम से मुलाकात रू-ब-रू
अश्कों से भीगे लफ्जों का सैलाब है - I Miss U
होगी तसल्ली जो तुम कहो - I Miss U too
rrp
^:*/;”#~\(?)&<!>-%=+@$
अब इसे ही पढो, समझो..
लफ्ज तो बेमानी हो गये हैं!
rrp
- संदीप मसहूर
No comments:
Post a Comment