Monday, June 27, 2011

मौसम


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वो शहर छूटा, लोग भी खो गये, रिश्ते खत्म हुये..
फिर भी बारिश की बूंद बूंद यादें तरोताजा है !
(अब तो यहाँ सिर्फ दो ही मौसम - जाडा और सूखा)

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पहले सावन-भादों में दिल खिल उठता था
अब मुझे जाडों के दिन अच्छे लगने लगे हैं
(-शायर की पसंद भी आदमी की तरह ही बदलती है!)

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पहले सावन-भादों में दिल खिल उठता था
अब मुझे जाडों के दिन अच्छे लगने लगे हैं
(-पर आज भी जी डरता है तनहाई की धूप से..)

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-  संदीप  मसहूर

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