Monday, June 27, 2011

यादें


rrp

शाम तेरी याद थी.. रात तेरे सपने थे.. सुब्ह तेरा खयाल है..
मौसम आये.. मौसम गये.., जी का अपने यहीं एक हाल है!
-तेरे कुछ पल ही सही क्या वह कभी मेरे वास्ते भी होते है?

rrp

मै यहाँ अकेला मगर तेरी यादों के साथ-साथ..
यह सोहबत, हमसफरी मेरे जीने का सामान हैं!
(-और तुम वहाँ शायद अकेली, शायद.. .. ..)

rrp

तेरी यादों से मै जुदा होता ही नहीं कभी
सांसों की तरह पल-पल जिंदा रखती है यह मुझे!
देख, तुझ से बिछड कर भी इस तरह जिंदा हूँ मै!!

rrp

यूं तो हर दिन और रात गुजर ही जाते है लेकिन,
चंद लम्हों से बाहर निकलना दूबर हो जाता है!
आगे, इन्हीं चंद लम्हों से बन जाती हैं यादों की बारात..

rrp

तेरी सोहबत के चंद ही तो लम्हें थे.. निकल गये..
अब फिर मै अकेला हूँ - सारा दिन.. पूरी रात..
एक मुलाकात.. कितनी यादें रह जाती हैं!

rrp

सारी उम्र कहाँ? - पल दो पल भी काफी हैं..
एक मुलाकात.. कितनी यादें रह जाती हैं!
अब फिर मै अकेला हूँ - सारा दिन.. पूरी रात..

rrp

अब तो उस का चेहरा भी याद नहीं आता !
शायद वक्त ने अपना काम कर लिया !!
(- फिर, क्या वो दिल का तडपना, प्यार न था?)

rrp

-  संदीप  मसहूर

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