Monday, June 27, 2011

Mirror


rrp

आईना सिर्फ देखता-दिखाता है, महसूस नहीं करता
काश, तुम तो समझ लेती क्यूं है चेहरा उतरा-उतरासा
आईना नहीं, अपना रिश्ता तोडने को अब जी करता है

rrp

रोज देखता हूँ मै आईना, और आईना मुझे..
कभी जान-पहचान लगती है.. कभी अजनबीयत!
-ये बात है चेहरे की, मन की बात तो छोड ही दिजिये!!

rrp

-  संदीप  मसहूर

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