Saturday, December 31, 2011

First Jan


दिन आयेंगे-जायेंगे.. मौसम बदलते रहेंगे..
एक गिनती खत्म हुई तो नयी गिनती शुरू होगी!

नया साल मुबारक हो – कायम हैं शुभकामना!!!
-संदीप मसहूर


Monday, June 27, 2011

Hiccups


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बंद हुये थे खत, फोन.. अब तो हिचकी भी नहीं..
दोस्त! इस कदर भी किसी को भूलाना अच्छा नहीं!!
..यह क्या जीना जब तेरी यादों से मर गया हुं मै

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आप हमें अब भी याद किया करते हैं..
- आप ने कहा और हम ने मान भी लिया!
--फिर हिचकियों का सिलसिला क्यूं खत्म हुवा?

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-  संदीप  मसहूर

Missed Call


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कहा तो था कि पुकार लूंगी मै फिर एक बार
उन के लबों पे मेरा नाम बेहिस है आज भी!
कम से कम उन का कोई Missed Call ही आ जाये!!!

(बेहिस = untouch)
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-  संदीप  मसहूर

यादें


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शाम तेरी याद थी.. रात तेरे सपने थे.. सुब्ह तेरा खयाल है..
मौसम आये.. मौसम गये.., जी का अपने यहीं एक हाल है!
-तेरे कुछ पल ही सही क्या वह कभी मेरे वास्ते भी होते है?

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मै यहाँ अकेला मगर तेरी यादों के साथ-साथ..
यह सोहबत, हमसफरी मेरे जीने का सामान हैं!
(-और तुम वहाँ शायद अकेली, शायद.. .. ..)

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तेरी यादों से मै जुदा होता ही नहीं कभी
सांसों की तरह पल-पल जिंदा रखती है यह मुझे!
देख, तुझ से बिछड कर भी इस तरह जिंदा हूँ मै!!

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यूं तो हर दिन और रात गुजर ही जाते है लेकिन,
चंद लम्हों से बाहर निकलना दूबर हो जाता है!
आगे, इन्हीं चंद लम्हों से बन जाती हैं यादों की बारात..

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तेरी सोहबत के चंद ही तो लम्हें थे.. निकल गये..
अब फिर मै अकेला हूँ - सारा दिन.. पूरी रात..
एक मुलाकात.. कितनी यादें रह जाती हैं!

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सारी उम्र कहाँ? - पल दो पल भी काफी हैं..
एक मुलाकात.. कितनी यादें रह जाती हैं!
अब फिर मै अकेला हूँ - सारा दिन.. पूरी रात..

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अब तो उस का चेहरा भी याद नहीं आता !
शायद वक्त ने अपना काम कर लिया !!
(- फिर, क्या वो दिल का तडपना, प्यार न था?)

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-  संदीप  मसहूर

त्रिवेणीयां 'उस' के लिये !


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अकेलेपन का एहसास दिलाती है शाम
जानम की याद ले के आती है शाम
..और आगे रात गुजारनी बाक़ी है अभी!

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दिन काट चुका हूँ, शाम की दहलीज पे खडा हूँ,
रात सर पर है, और हमसफर है - तेरी जुदाई
(-देख तेरी जुदाई को कितने हिस्सों में बांटा है मैने)

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शाम और रात कितनी बैरन होती है
- किसी तनहा आदमी से पूछो यारों!
(यह जीना भी कोई जीना है लल्लू..)

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न कोई चांदनी.. न कोई सितारा..
..आसमान में फकत चाँद पूरा
काश, कभी तुम भी मुझे मिलो यूं अकेले !

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कल पूनम की रात है, माहौल में नश्शासा
ठंडी हवायें.. मचलते अरमान.. जी भडकासा!
कोई कहे भी तो, तू मेरा चाँद - मै तेरी चाँदनी!!

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अकेले अकेले घर सजा रहा हूँ
हर जगह तुम्हें बैठा हुवा पाता हूँ
तेरे आने की तय्यारियाँ भी लुभावनी है!

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मौसम में तब्दिलियाँ कैसे आई अचानक?
हवा क्यूं महकी? फिजा क्यूं रंगीन बनी?
..कोई आ रहा है शायद मेरे पास, करीब, नजदीक़!

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क्या सच? क्या झूठ?.. क्या सपने? क्या हकीकत?..
उलझा हुवा हूँ मै कई सारे बे-मतलब सवालों से..
तेरा होना मेरे लिये.. यहीं इक मानी, बारी सब बे-मानी!

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दिन जुदाई के गिन रहा हूँ पल-पल..
कब आवोगे? पूछता है यह दिल बेकल..
आज तुम मिली.. चलो नई गिनती शुरु करें!

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तेरे खयाल से दिल में कई सारे कुन्जोकस जनम लेते हैं
मगर अहिस्ता अहिस्ता वह जंजीर बन कर मुझे जखड देते  हैं
-लो, मेरी एक और हार मुकम्मल हो गयी है!
(कुन्जोकस = Rainbow)
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मै अपने आप को ढूंढ रहा था, हमेशा की तरह
तेरे बिस्तर पे अकेला जाग रहा था, हमेशा की तरह
(हुई है तुझ से जो निस्बत यह उसी का सदका है..)

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इस तरह यूं अपने आप को छुपाये रखना,
- एक तरीका है उन्हें नाराजगी जताने का !
कल तुम्हारे शहर से लौटा हूँ अजनबी की तरह!!!

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याद नहीं उस का नाम, सूरत..
-ख्वाब में मिली थी वोह मुझ से
ख्वाब तो हमेशा धुंधले ही होते हैं

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अब तो उस का चेहरा भी याद नहीं आता !
शायद वक्त ने अपना काम कर लिया !!
(-फिर, क्या वो दिल का तडपना, प्यार न था?)

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दिन-रात रो लिये.. कोई मौसम हो रोते ही रहे..
चलो, अब झूठा ही सही कुछ देर हम हँस भी ले!
(-जिन्हों ने गम दिये, उन से यूं बदला लिया जाये!!)

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-  संदीप  मसहूर

Mirror


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आईना सिर्फ देखता-दिखाता है, महसूस नहीं करता
काश, तुम तो समझ लेती क्यूं है चेहरा उतरा-उतरासा
आईना नहीं, अपना रिश्ता तोडने को अब जी करता है

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रोज देखता हूँ मै आईना, और आईना मुझे..
कभी जान-पहचान लगती है.. कभी अजनबीयत!
-ये बात है चेहरे की, मन की बात तो छोड ही दिजिये!!

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-  संदीप  मसहूर