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अकेलेपन का एहसास दिलाती है शाम
जानम की याद ले के आती है शाम
..और आगे रात गुजारनी बाक़ी है अभी!
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दिन काट चुका हूँ, शाम की दहलीज पे खडा हूँ,
रात सर पर है, और हमसफर है - तेरी जुदाई
(-देख तेरी जुदाई को कितने हिस्सों में बांटा है मैने)
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शाम और रात कितनी बैरन होती है
- किसी तनहा आदमी से पूछो यारों!
(यह जीना भी कोई जीना है लल्लू..)
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न कोई चांदनी.. न कोई सितारा..
..आसमान में फकत चाँद पूरा
काश, कभी तुम भी मुझे मिलो यूं अकेले !
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कल पूनम की रात है, माहौल में नश्शासा
ठंडी हवायें.. मचलते अरमान.. जी भडकासा!
कोई कहे भी तो, तू मेरा चाँद - मै तेरी चाँदनी!!
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अकेले अकेले घर सजा रहा हूँ
हर जगह तुम्हें बैठा हुवा पाता हूँ
तेरे आने की तय्यारियाँ भी लुभावनी है!
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मौसम में तब्दिलियाँ कैसे आई अचानक?
हवा क्यूं महकी? फिजा क्यूं रंगीन बनी?
..कोई आ रहा है शायद मेरे पास, करीब, नजदीक़!
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क्या सच? क्या झूठ?.. क्या सपने? क्या हकीकत?..
उलझा हुवा हूँ मै कई सारे बे-मतलब सवालों से..
तेरा होना मेरे लिये.. यहीं इक मानी, बारी सब बे-मानी!
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दिन जुदाई के गिन रहा हूँ पल-पल..
कब आवोगे? पूछता है यह दिल बेकल..
आज तुम मिली.. चलो नई गिनती शुरु करें!
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तेरे खयाल से दिल में कई सारे कुन्जोकस जनम लेते हैं
मगर अहिस्ता अहिस्ता वह जंजीर बन कर मुझे जखड देते हैं
-लो, मेरी एक और हार मुकम्मल हो गयी है!
(कुन्जोकस = Rainbow)
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मै अपने आप को ढूंढ रहा था, हमेशा की तरह
तेरे बिस्तर पे अकेला जाग रहा था, हमेशा की तरह
(हुई है तुझ से जो निस्बत यह उसी का सदका है..)
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इस तरह यूं अपने आप को छुपाये रखना,
- एक तरीका है उन्हें नाराजगी जताने का !
कल तुम्हारे शहर से लौटा हूँ अजनबी की तरह!!!
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याद नहीं उस का नाम, सूरत..
-ख्वाब में मिली थी वोह मुझ से
ख्वाब तो हमेशा धुंधले ही होते हैं
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अब तो उस का चेहरा भी याद नहीं आता !
शायद वक्त ने अपना काम कर लिया !!
(-फिर, क्या वो दिल का तडपना, प्यार न था?)
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दिन-रात रो लिये.. कोई मौसम हो रोते ही रहे..
चलो, अब झूठा ही सही कुछ देर हम हँस भी ले!
(-जिन्हों ने गम दिये, उन से यूं बदला लिया जाये!!)
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- संदीप मसहूर